28 April, 2015

वक्त का है खेल तमाशा by Tripti Pandey


वक्त का है खेल तमाशा,
आज उम्मीदे कल है निराशा.
आशाओ की डोर है पतली,
उम्मीदो का दिया बुझा सा.
सागर की लहरों के किनारे,
मन मेरा हर वक़्त है प्यासा.
नये नये से ख्वाब दिखाती,
बुझती नहीं कभी अभिलषा.

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